भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक बार फिर से चिंता जताई है। उन्होंने इसे “असंतुलित” और “अनुचित” करार देते हुए कहा कि यह सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि भारतीय उद्योग जगत की भी ज़िम्मेदारी है कि इस समस्या का समाधान किया जाए। जयशंकर ने यह बयान एक उच्च स्तरीय बैठक के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने भारत-चीन व्यापारिक संबंधों की वर्तमान स्थिति पर गहन चर्चा की।
भारत-चीन व्यापार संबंधों की वर्तमान स्थिति
भारत और चीन के बीच व्यापार लंबे समय से असंतुलित रहा है। चीन भारत के लिए सबसे बड़ा आयातक देश है, लेकिन यह व्यापार भारत के लिए घाटे का सौदा बनता जा रहा है। हाल ही में सामने आए आंकड़ों के अनुसार, 2023 में भारत और चीन के बीच व्यापारिक घाटा लगभग 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था, जिसमें मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन और मशीनरी शामिल थे।
जयशंकर ने इसे भारत के लिए “चिंताजनक स्थिति” बताते हुए कहा, “हम अपने व्यापारिक संबंधों में सुधार चाहते हैं, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम संतुलन बनाए रखें। वर्तमान में, व्यापार असंतुलन हमारे हित में नहीं है।”
भारतीय उद्योग पर ज़िम्मेदारी
जयशंकर ने भारतीय उद्योग जगत को भी इस असंतुलन के लिए आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि भारतीय कंपनियों को चीन पर निर्भरता कम करनी चाहिए और देश में उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा, “सरकार ने मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के तहत उद्योगों को समर्थन दिया है, लेकिन उद्योग जगत को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। हमें न सिर्फ आयात पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि अपनी निर्यात क्षमताओं को भी बढ़ाना होगा।”
व्यापार संबंधों में सुधार के उपाय
भारत और चीन के व्यापारिक संबंधों में सुधार के लिए जयशंकर ने कुछ ठोस उपायों का सुझाव दिया:
- विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: भारत को अपने विनिर्माण क्षेत्र में सुधार करना होगा ताकि चीन पर निर्भरता कम की जा सके। इसके लिए नई टेक्नोलॉजी और नवाचार को बढ़ावा देना जरूरी है।
- निर्यात बढ़ावा: भारत को अपनी निर्यात क्षमताओं को बढ़ाना होगा। इसके लिए सरकार और उद्योग जगत को मिलकर काम करना होगा ताकि भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सके।
- समान व्यापारिक नियम: चीन के साथ व्यापारिक संबंधों में पारदर्शिता और समान व्यापारिक नियमों की मांग भी महत्वपूर्ण है। जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन तभी संभव है जब नियम समान हों।
सीमा विवाद और व्यापार
जयशंकर ने भारत-चीन सीमा विवाद का व्यापारिक संबंधों पर प्रभाव भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जब तक दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दे हल नहीं होते, तब तक व्यापारिक संबंधों में पूरी तरह से सामान्य स्थिति की उम्मीद नहीं की जा सकती। “सीमा पर शांति और स्थिरता व्यापारिक संबंधों के लिए आवश्यक है,” उन्होंने कहा।
उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
जयशंकर के इस बयान के बाद, कई भारतीय उद्योगपतियों और व्यापारिक संगठनों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने कहा कि वे सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और भारत की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के साथ व्यापारिक असंतुलन को ठीक करने के लिए लंबा समय लगेगा, क्योंकि चीन की उत्पादन क्षमता और सस्ते उत्पादों का वैश्विक दबदबा बना हुआ है।
निष्कर्ष
एस. जयशंकर द्वारा दिए गए बयान ने भारत-चीन व्यापारिक संबंधों पर नई बहस को जन्म दिया है। यह साफ है कि भारत अपने व्यापारिक संतुलन को सुधारने के लिए गंभीर है और इसके लिए सरकार और उद्योग जगत दोनों को मिलकर काम करना होगा। व्यापारिक संबंधों में सुधार से न केवल भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी, बल्कि यह देश की आत्मनिर्भरता को भी मजबूत करेगा।